प्रकृति तो सोने के अंडे देने वाली बत्तक के समान है। पर यदि हम बत्तक मारकर सारे अंडे हिथियाना चाहें, तो हम सब कुछ खो देंगे। हमें प्रकृति का प्रदूषण तथा शोषण बंद कर देना चाहिये। अपने अस्तित्व तथा आने वाली पीढ़ियों के अस्तित्व के लिये हमें प्रकृति की रक्षा करनी चाहिये।