महकी हुई हवा, खुला संदेश दे रही थी-
खिला है ब्रह्मपुष्प, पास ही कहीं ,
धरा पर तो अभी-अभी,संध्या उतरी थी,
ब्रह्मपुष्प खिलने की,वेला न थी।
दूर दक्षिण केरल,-प्रभु के अपने देश से,
पधारी थीं प्यारी अम्मा, फ़रीदाबाद में,
सुरभित सभी हुये थे,देवि माँ की सुरभि से,
ऐतिहासिक था ये क्षण, सब के लिये।
उमड़ रही थी भीड़, उमस बहुत थी भारी,
पर भीड़ को इस की, परवाह नही थी,
स्वयं अम्मा अमृतानंदमयी,यहाँ पधारीं थीं,
आनंद से मदमत्त वहाँ, भक्त थे सभी।
अम्मा के पावन चरण, पड़े जहाँ-जहाँ,
कमल करुणा के, खिल गये वहाँ,
लाखो-दीप प्रेम के, जल गये स्वत:वहाँ,
अँधेरे का न रहा, कहीं नामोनिशाँ।
—
सुशीला महाजन


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