भारत को सुन्दर बनाइये

बच्चो,
हम मनुष्यजाति, इस मनोहर भूमि और प्रकृति के आभारी हैं। इसकी
पवित्रता व सौन्दर्य की पूर्ण सुरक्षा हम सभी का धर्म है। भूमि हमें वायु और जल देती है। रहने की जगह देती है। हमारी सब गलतियों और अधर्मों को क्षमा करके हमारी रक्षा करती है। इस दृष्टि से भूमि हमारी माता है। जबकि हमारी मां, जिसने हमको जन्म दिया है, करीब दो वर्ष की आयु तक हमारी लात-मार सह लेती है, भूमाता, पूरी जिन्दगी में हमारी लात-मार सहकर भी हमारी रक्षा करती रहती हैं। इसलिए, हमें भूमि देवी की रक्षा भी उतनी श्रद्धा से करनी चाहिये जितनी हम अपने शरीर की रक्षा करते हैं। भूमि को मलिन करना (गन्दा करना) अपने ही रक्त में जहर मिलाने के तुल्य है। यह हमें समझ लेना चाहिए।

अशुचित्व के नाम पर विदेशी हमारे राज्य की निन्दा कम नहीं करते। विदेशी मासिकाओं, पत्रों और चैनलों में हमारी सडकों और सार्वजनिक स्थानों के विमर्श देखकर हमें बडी खिन्नता होती है।

हमारा भारत आणवशक्ति है। हमारा देश आर्थिक व्यवस्था के क्षेत्र में, शास्त्र-सांकेतिक विद्याओं में प्रगति कर रहा है। पर, सफाई और स्वच्छता के अभाव के कारण, हमारी स्थिति उस शिशु की जैसी है जो लेटे लेटे बिस्तर में ही पेशाब करता है।

हम विदेशियों के जैसे कपडे पहनने, खाना खाने और दूसरे रीत-रिवाजों केा अनुकरण करते हैं। पर, हम विदेशियों के जैसे सफाई और स्वच्छता का अनुकरण क्यों नहीं करते, बीच रास्तों में थूकने और पेशाब करने से, या सार्वजनिक शौचालयों की सफाई नहीं करने से, कितनी बीमारियों को बुलावा देते हैं?

अम्मा केवल एक ही बात करना चाहती है। हमारी जनता को देश को हानि पहुंचाने वाली ऐसी आदतों को समाप्त करने का हमें भरपूर प्रयत्न करना चाहिये। हमारी जन्म-भूमि के आत्माभिमान को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी बात से हमारा हृदय दुःखना चाहिये। हमें प्रतिज्ञा करनी है कि आज की इस अवस्था को बदलवाने के लिए हम पूरा प्रयत्न करेंगे।

सार्वजनिक स्थानों में कूडा-कचरा नहीं फेंके, पेशाब न करें, न थूकें। नाक की सफाई करते समय या थूकते समय, एक रूमाल इस्तेमाल करें। उसके बाद उसे जेब में रखें और बाद में उसको साफ करके दुबारा उपयोग करें।

सफाई व स्वच्छता न होने के कारण, दूसरे देशों के सामने हमें अभी और शर्मिन्दा नहीं होना पडे। घर, परिसर व सार्वजनिक स्थानों को साफ रखने का काम एक यज्ञ की तरह मान लें। खाने और सोने के जैसे ही, परिसरों की सफाई को भी हमें अपने जीवन का एक भाग मान लें। जैसे हम अपने शरीर की सफाई के लिए रोज स्नान करते हैं, सुगन्ध द्रव्यों का उपयोग करते हैं, ठीक उसी तरह, देश रूपी शरीर के भाग, जैसे सडकें, सार्वजनिक स्थान आदि को साफ और सुन्दर बनाकर रखने का प्रयत्न करें। इसे एक व्रत मानकर पालें। यदि जनता, सरकार और दूसरी संस्थायें मिलकर काम करें तो यह यज्ञ पूरा होगा।

भारत की सुन्दरता और संस्कार को देखने के लिए जो पर्यटक आते हैं, उनके स्वागत के लिए हम सुन्दर स्त्रियों को तैयार करते हैं। परन्तु, सचमुच ही हमारी सुन्दर भारतमाता एक कुष्ठ-रोगी जैसे दिखाई पडती है। उस भारतमाता के सौन्दर्य और स्वास्थ्य ही हमें वापस लाने हैं।

स्वादिष्ट खीर भी, यदि एक गन्दे गिलास में दिया जाय, कोई नहीं लेगा। गन्दगी से भरे स्थान किसी को भी आकर्षित नहीं करेंगे। जब हमारे घर में एक मेहमान आते हैं, जिस तरह हम अपने घर व परिसर को साफ रखते हैं, उसी तरह हमारी जन्मभूमि को साफ रखना है।

एक पीपे में कूडे-कचरे को डालकर, उसे एक साईकिल पर ले जाकर उसकी ठीक तरीके से सफाई करवाकर उससे खाद बनवायें। जब थूकने की इच्छा होती हो, रूमाल के उपयोग से सार्वजनिक स्थानों में थूकने की क्रिया भी कम हो जायेगी। ऐसा सब करने से, एक साल के अन्दर ही, हम परिसरों में गन्दगी फैलाने की प्रथा कम कर सकते हैं।

बच्चों, यह मत सोचें कि यह केवल मठ की ही परियोजना है। यह हम सभी एक की आवश्यकता है। यह एक सार्वजनिक पद्वति है। हमारी जन्म भूमि और समाज की आवश्यकता है। भूमि और प्रकृति की आवश्यकता है। इसलिए यदि हमें अपने बच्चों से प्यार हो, हमारी जन्म भूमि के प्रति आदर हो, अपने स्वास्थ्य के प्रति श्रद्धा हो, हममें हर एक को जागना है। जागना ही पडेगा। उस कृपा के लिए हम सब परमात्मा से प्रार्थना करें।

(अमल भारतम् परियोजना के लिए अम्मा का सन्देश)

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